नई दिल्ली (एप ब्यूरो)
देश भर में मुस्लिम समाज के लोगों ने अलग-अलग इलाकों में मोहम्मद पैगंबर साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत दिवस पर जहां एक ओर जलसे और जुलूस के साथ ताजिया निकाल कर उन्हें याद किया गया वहीं दूसरी ओर मस्जिदों में नमाज़ों और दुआओं का एहतमाम किया गया, साथ ही अनेक मुसलमानों ने रोज़ा भी रखा। दिल्ली सहित देश के विभिन्न राज्यों, शहरों में भारी सुरक्षाबल के बीच मुहर्रम के मौके पर ताजिए और जुलूस निकाले गये। अनेक शहरों में ताजिया का जुलूस मार्गों से होकर गुज़ारा गया। अनेक शहरों में पुलिस ने ताजिया को लेकर अपनी एडवाइजरी के माध्यम से जुलूसों को निकलवाया है।
ज्ञात रहे कि इस्लाम धर्म में यौम ए आशुरा यानि 10 मोहर्रम का दिन बड़ा महत्व रखता है। कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के अलावा भी इस दिन की बहुत सी विशेषताएं हैं। मुहर्रम/ मोहर्रम माह की दसवीं तारीख जिसे यौमे आशुरा कहा जाता है, यह इमाम हुसैन की (रअ) शहादत का दिवस है। ‘यौमे आशूरा’ सभी मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद अहम् दिन माना जाता हैं। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार ‘आशूरा’ या मोहर्रम के दसवें दिन पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत, कर्बला के मैदान में हुई थी। यहां हज़रत इमाम हुसैन के साथ उनके परिवारजन तथा कई अनुयायी कर्बला के मैदान में शहीद हुए थे। हज़रत इमाम हुसैन, पैगंबर हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के नवासे थे। हज़रत अली (र.अ) अरबिस्तान (मक्का-मदीना वाला भू-भाग) के ख़लीफा यानी मुसलमानों के धार्मिक-सामाजिक राजनीतिक मुखिया थे। उन्हें यह अधिकार उस दौर की अवाम ने दिया था अर्थात् हज़रत अली को लोगों ने जनतांत्रिक तरीके से अपना मुखिया,ख़लीफा बनाया था।
मगर यज़ीद और उसके सहयोगियों ने षड़यंत्रकारी तरीके से उन्हें बुलाकर कर्बला के मैदान में भूखा प्यासा रखकर शहीद किया। इस ग़म के वाकये को दुनिया भर के मुसलमान याद करते हैं।
मुहर्रम,हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए अन्याय के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई और सच्चाई के साथ मज़बूती से खड़े रहने का संदेश हम सबको प्रेरणा देता है।
बता दें कि इमाम हुसैन कर्बला के मैदान में अपने 72 साथियों,परिवारजनों के साथ शहीद हो गए थे। जिसके बाद से इस दिन को मुस्लिम समुदाय द्वारा मुहर्रम के रूप में याद किया जाता है और जगह-जगह जलसे जुलूस और ताजिया निकाले जाते हैं। दरअसल, यह ताजिया मुहर्रम की दसवीं तारीख़ यौम-ए-आशुरा के दिन निकाले जाते हैं। शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के पूरे महीने ही मातम मनाते हैं और काले कपड़े पहनते हैं। जबकि अन्य मुस्लिम समुदाय मोहर्रम पर ताजियादारी,जुलूसों और जलसों से हज़रत इमाम हुसैन,की शहादत को याद करता है।