नई दिल्ली (एप ब्यूरो)
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जघन्य अपराध करने वाले किशोर की मानसिक और शारीरिक क्षमता का शीघ्र प्रारंभिक मूल्यांकन किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की कोर्ट का यह आदेश उन नाबालिगों की याचिकाओं के एक समूह के जवाब में आया है,जो जघन्य अपराधों के आरोपों का सामना कर रहे थे। उन्होंने बाल न्यायालय द्वारा वयस्कों के रूप में मुकदमा चलाए जाने के आदेशों को चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय बोर्डों को जघन्य अपराधों से निपटने के दौरान धारा 14(3) के प्रावधानों और धारा 14(4) के प्रावधानों का पालन करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों को तेज़ी से और अनावश्यक देरी के बिना संसाधित किया जाना चाहिए। साथ ही धारा 15 के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन शुरू किया जाना चाहिए। साथ ही धारा 14 की शर्तों और किशोर न्याय अधिनियम और इसके संबंधित नियमों में उल्लिखित प्रावधानों के अनुरूप तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए। प्रत्येक मामले की परिस्थितियों और तथ्यों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि राज्य को किशोरों के अधिकारों पर विचार करना चाहिए, जिसमें समय पर प्रारंभिक मूल्यांकन का उनका अधिकार भी शामिल है। वहीं, राज्य को जघन्य अपराधों के मामलों में अपराधियों पर मुकदमा चलाने और दंडित करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है, चूंकि ऐसे अपराधों के दूरगामी प्रभाव होते हैं। कोर्ट ने कहा जघन्य अपराधों के संबंध में प्रारंभिक मूल्यांकन को पूरा करने के लिए धारा 14 के तहत निर्धारित समयावधि को अनिवार्य नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि प्रारंभिक मूल्यांकन को अनुचित रूप से लम्बा खींचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। न्यायाधीश ने कहा कि बाल न्यायालय किशोर न्याय बोर्ड से प्रारंभिक मूल्यांकन लेने के बाद यह तय करने के लिए बाध्य है कि बच्चे पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की आवश्यकता है या नहीं। कोर्ट ने कानून के अनुसार उचित आदेश के लिए मामलों को बाल न्यायालय में वापस भेज दिया।