भारत के पड़ोसी नेपाल देश पर चीन हो रहा है बड़ा मेहरबान तो बढ़ रहीं हैं चिंताएं

अनेक प्रोजेक्‍ट्स को पूरा करने में कर रहा है बड़ा सहयोग

नई दिल्ली। (फ़ीचर डेस्क)

चीन देश के कारनामें पूरी दुनिया में किसी से भी छिपे नहीं हैं। भारत की सीमा और सीमावर्ती क्षेत्रो में क्या क्या हरकतें या घुसपैठ चीन ने की हैं इसकी चर्चा भारत और भारतीय संसद में भी हुई है। चीन भारत के पड़ोसी देशों विशेषकर सीमावर्ती देश नेपाल,पाकिस्तान,बांग्लादेश के साथ बढ़ चढ़ कर हमदर्दी और मेहेरबानी करने पर उतारू है। इन देशों के कई प्रोजेक्टों को चीन अपनी मदद दे रहा है। इसको लेकर एशिया में भी चिंताएं बढ़ गयीं हैं। नेपाल  नेपाल में चीन कई प्रोजेक्‍ट्स को पूरा करने में जुटा है।  पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी दोनों देशों के सहयोग का परिणाम है। इसी एयरपोर्ट की वजह से देश में कई लोगों की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। नेपाल के पीएम प्रचंड ने पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का उद्घाटन किया लेकिन जब से यह एयरपोर्ट खुला है तब से एक भी इंटरनेशनल फ्लाइट ने टेकऑफ नहीं किया है। यह बात भी सच है कि जिस समय एयरपोर्ट का निर्माण हो रहा था, उस समय इसे लेकर काफी विवाद हुआ था। इस समारोह में प्रधानमंत्री से लेकर वित्‍त मंत्री और दूसरे टॉप नेता शामिल हुए थे। ऐसा करके सरकार की तरफ से चीन को स्‍पष्‍ट संदेश दिया गया था कि देश में ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर को बढ़ाने के लिए वह पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। लेकिन जब से ही यह एयरपोर्ट खुला है, तब से यह एक सिरदर्द बनकर रह गया है। नेपाली मीडिया की तरफ से जो रिपोर्ट्स आईं हैं अगर उन पर यकीन करें तो जब से यह एयरपोर्ट खुला है तब से एक भी इंटरनेशनल फ्लाइट ने टेकऑफ नहीं किया है। इसकी वजह से अब ये सवाल उठने लगे हैं कि कहीं यह प्रोजेक्‍ट भी देश में चल रहे दूसरे प्रोजेक्‍ट्स की तरह मिट्टी में तो नहीं मिल जाएगा। शुरुआत में सरकारी अधिकारी और देश की जनता इस प्रोजेक्‍ट को लेकर काफी आशावादी थीं। मगर अब जिस तरह से यहां पर काम हो रहा है और तैयारियों में कमी की वजह से जो डर विशेषज्ञों की तरफ से जताया गया था, वह ऐसा लगता है कि सच हो जाएगा। एयरपोर्ट पर आमद न के बराबर है। पाकिस्‍तान और श्रीलंका की ही तरह चीन, नेपाल का भी सबसे बड़ा ऋणदाता है। इस देश ने यहां पर इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर प्रोजेक्‍ट्स में काफी निवेश किया है। साल 2017 में नेपाल ने पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के निर्माण के लिए चीन से 215 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया था। चीन के एक्जिम बैंक की तरफ से यह कर्ज नेपाल को दिया गया था। जिस समय चीन की तरफ से लोन दिया गया तो हर कोई खुश था। माना गया कि यह लोन देश के इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर विकास में काफी योगदान देगा। हालांकि तब जो शर्ते रखी गई थीं, उस पर चिंता व्यक्त की गई थी।सबको पता है कि चीन बहुत ज्‍यादा ब्‍याज दर पर कर्ज देता है। चीन के कमर्शियल बैंक 5.5 फीसदी से छह फीसदी तक की ब्‍याज दर पर देते हैं जबकि दूसरे देशों ने ब्‍याज दर करीब तीन फीसदी तय की हुई है। ज्‍यादा ब्‍याज दर यानी लंबे समय तक नेपाल को ब्‍याज के तौर पर ज्‍यादा धन‍राशि का भुगतान करना पड़ेगा। इससे देश की आर्थिक स्तिथि पर सीधा असर पड़ेगा। पहले इस एयरपोर्ट का निर्माण जापान की तरफ से किया जाना था। जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी की तरफ से एयरपोर्ट को चरणों के तहत पूरा करने का प्रस्‍ताव दिया गया था। एशियन डेवलपमेंट बैंक भी इसी तरह से फंड देने को सहमत हुआ था। उस समय नेपाल की सरकार इस प्रोजेक्‍ट को एक ही बार में पूरा करना चाहती थी। एडीबी ने इस विचार के बाद फंड देने से इनकार कर दिया। इसके बाद साल 2018 में पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ चाइना के साथ एक एमओयू पर साइन किए गए। कई लोग अब पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट को युगांडा के एयरपोर्ट और श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह की तरह देखने लगे हैं। श्रीलंका ने हंबनटोटा के लिए 1.1 अरब डॉलर का कर्ज चीन से लिया था। लेकिन इसका भुगतान करने में वह असफल रहा और श्रीलंका का  परिणाम सबके सामने है। अब चीन के सहयोग से नेपाल की स्तिथि क्या बनेगी और भारत के सम्बन्ध से क्या मामले बनेगें ये वास्तव में चिंता का विषय हैं।

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