इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ओबीसी आयोग की रिपोर्ट वेबसाइट पर अपलोड करने का दिया आदेश
चुनावों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बड़ा आदेश दिया

लखनऊ (एप ब्यूरो)
उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर चला मामला अब इस परिणाम पर पहुंचा है कि यूपी सरकार ने निकाय चुनाव को लेकर नए परिसीमन और आरक्षण की अधिसूचना जारी कर दी है। नगर विकास मंत्री एके शर्मा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया है कि आरक्षण का ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। महिलाओं के लिए कुल 288, ओबीसी को कुल 205, एससी की कुल 110, एसटी को कुल 02 सीटें आरक्षित की गई हैं। उधर इन चुनावों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने वेबसाइट पर ओबीसी आयोग की रिपोर्ट अपलोड करने को कहा है। इसके लिए यूपी सरकार को समय दिया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने निकाय चुनाव में आरक्षण संबंधी अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति रंजन राय और न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य स्थानीय निकाय पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को तलब किया था। इसी मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने रिपोर्ट सार्वजनिक करने का आदेश दिया। दरअसल, यूपी सरकार के मंत्री एके शर्मा ने 30 मार्च को आरक्षण सूची जारी की थी। उन्होंने एक सप्ताह तक आपत्ति दाखिल करने का समय दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने नगर लखीमपुर के पंचायत सीट आरक्षित किए जाने को लेकर चुनौती दी। याची के अधिवक्ता गौरव मल्होत्रा ने कोर्ट में कहा कि आयोग की रिपोर्ट उपलब्ध न होने के कारण याची को 30 मार्च की अधिसूचना और संतोषजनक आपत्ति दाखिल करने में काफी परेशानी हो रही है। कोर्ट को बताया कि राजनीतिक तौर पर जिन जातियों को पिछड़ी जाति माना गया है। उनकी सूची भी सार्वजनिक नहीं की गई है। साथ ही यह भी साफ नहीं किया गया है कि कौन-सी पिछड़ी जातियों के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं। जबकि अपर महाधिवक्ता कुलदीपपति त्रिपाठी के अनुसार, याची ने पिछड़ा वर्ग आयोग को सूची प्राप्त करने के लिए किसी भी अधिकारी से संपर्क नहीं किया है। इसके बाद कोर्ट ने 6 अप्रैल को मामले की सुनवाई के लिए तारीख दी थी। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि निकाय चुनाव के संबंध में पिछड़ा वर्ग को डेटा के आधार पर चिह्निकरण कर किया जाना जरूरी है। क्योंकि राजनीतिक पिछड़ापन सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन से अलग होता है।
ज्ञात रहे कि यूपी में नगर निकाय चुनाव पहले जनवरी में ही कराए जाने थे। इसको लेकर नगर विकास विभाग ने अंतिम आरक्षण की सूची जारी कर दी थी। इस आरक्षण के खिलाफ 65 याचिकाएं हाईकोर्ट में पहुंच गई। हाईकोर्ट ने सभी पर सुनवाई के बाद 27 दिसंबर को फैसला सुनाया। फैसले में हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के बिना ही निकाय चुनाव कराने का सरकार को आदेश दिया। बिना आरक्षण के सभी सीटें अनारक्षित हो जाती, यानी वहां से किसी भी जाति का प्रत्याशी चुनाव लड़ सकता था। कोर्ट के इस फैसले को यूपी सरकार ने अपने विरोध के तौर पर देखा। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को चुनाव जल्दी कराने चाहिए। अगर आरक्षण तय करना है, तो ट्रिपल टेस्ट के बिना कोई आरक्षण तय नहीं होगा। इससे पहले, यूपी सरकार ने जो आरक्षण सूची जारी की थी वह रैपिड टेस्ट के आधार पर थी। हाईकोर्ट के बिना आरक्षण चुनाव करने के आदेश के तुरंत बाद सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया सामने आई थी। उन्होंने कहा था कि प्रदेश में पहले ओबीसी आरक्षण देंगे, फिर चुनाव कराएंगे और अगर आवश्यकता पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।” इसके अगले दिन यानी 28 फरवरी को यूपी सरकार ने ओबीसी अयोग गठित करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। रिटायर्ड जस्टिस राम अवतार सिंह को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। सदस्यों में चोब सिंह वर्मा, महेंद्र कुमार, संतोष विश्वकर्मा और ब्रजेश सोनी को शामिल किया गया। आयोग राज्यपाल की सहमति से 6 महीने के लिए गठित किया गया था। हालांकि, ढाई महीने से कम समय में ही आयोग ने गुरुवार को सीएम योगी को रिपोर्ट सौंप दी। हाईकोर्ट के फैसले को लेकर विपक्षी दलों ने आरक्षण को लेकर भाजपा सरकार को घेरना शुरू कर दिया था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। वहां 28 दिसंबर को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले को कोर्ट में मेंशन किया,उन्होंने कहा कि डीलिमिटेशन की प्रक्रिया चल रही है। सरकार ने ओबीसी आयोग का गठन कर दिया है। स्थानीय निकाय चुनाव अब आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही कराया जाएगा। गठन होने के बाद 31 दिसंबर को ओबीसी आयोग ने पहली कॉन्फ्रेंस की थी। आयोग के सदस्यों ने कहा था कि यह लंबा काम है और रिपोर्ट तैयार होने में 31 मार्च का समय लग सकता है। इस टीम ने अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए 75 जिलों का दौरा किया हालांकि बीच में आयोग का यह बयान सामने आया था कि रिपोर्ट फरवरी के अंत तक तैयार हो जाएगी। आयोग ने 71 दिन में ही रिपोर्ट सीएम को सौंप दी है। जबकि इस बीच लखनऊ नगर निगम, कानपुर नगर निगम समेत तमाम नगर निकायों का कार्यकाल खत्म हो गया है। 2023 में होने वाले नगर निकाय चुनाव में 17 नगर निगम, 200 नगरपालिका परिषद और 517 नगर पंचायत में चुनाव कराया जाना है। जबकि 2017 में 16 नगर निगम, 198 नगर पालिका परिषद और 438 नगर पंचायत में चुनाव हुआ था। 5 साल में नए गठन के चलते इनकी संख्या बढ़ी है। ऐसे में ओबीसी आयोग की रिपोर्ट आने के बाद फिर से निकाय चुनाव को लेकर सरगर्मी फिर बढ़ गयी है।