नई दिल्ली (अनवार अहमद नूर)
देश की मुख्य धारा वाली और बड़े संवैधानिक पदों की राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका बनाने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के चुनाव 2023 की घोषणा होने के साथ ही छात्रों में सरगर्मियां बढ़ गई हैं। अभी तक कोरोना महामारी के कारण ये चुनाव नहीं हो पाए थे।तीन साल बाद ये चुनाव होने जा रहे हैं। डीयू प्रशासन ने चुनाव की आधिकारिक घोषणा कर दी है। मतदान 22 सितंबर को होगा। अभी रिजल्ट की तिथि, समय व स्थान की घोषणा नहीं की गई है। चुनाव तिथियों की अधिसूचना जारी होते ही अब आचार संहिता भी लागू हो गई है। चुनाव में लिंगदोह कमेटी व सुप्रीम कोर्ट की सिफ़ारिशों का सख़्ती से पालन करवाए जाने की बात कही गई है।
चुनावी एलान होते ही छात्र संगठनों ने भी कमर कस ली है और चुनावी जोड़तोड़ बनाने में जुट गए हैं। चुनावों के लिए अगस्त की शुरुआत में ही डीयू के पर्शियन विभाग के प्रो. चंद्रशेखर को मुख्य चुनाव अधिकारी नियुक्त किया जा चुका है। डूसू चुनाव के लिए नामांकन पत्र 12 सितंबर दोपहर तीन बजे तक जमा कराए जा सकते हैं। इसके बाद उसी दिन नामांकन पत्रों की छंटनी की जाएगी और छंटनी के बाद शेष रहे उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी जाएगी। नामांकित उम्मीदवार अपना नाम 13 सितंबर दोपहर 12 बजे तक वापिस ले सकते हैं। उम्मीदवारों की अंतिम सूची 13 सितंबर शाम पांच बजे जारी की जाएगी। इसके बाद उम्मीदवार अपना चुनाव प्रचार शुरू कर सकेंगे। प्रशासन ने अभी मतगणना की तारीख व समय घोषित नहीं किया है। जल्द ही इसके संबंध में सूचना जारी की जाएगी। मतदान दो शिफ्टों में होगा। दिन के कॉलेजों में वोट सुबह 8.30 बजे से 1.00 बजे तक डाले जा सकेंगे। सांध्यकालीन कॉलेजों में वोट डालने का समय दोपहर तीन बजे से रात 7.30 बजे तक का है। मालूम हो कि कोरोना महामारी के कारण वर्ष 2020, 2021 व 2022 में ये छात्र संघ चुनाव नहीं हो सके थे।
ज्ञात रहे कि किसी बड़े संवैधानिक पद की तरह होने वाले डूसू चुनाव में मुख्य मुकाबला छात्र संगठन एनएसयूआई और एबीवीपी में होता रहा है। आइसा व अन्य छात्र संगठन भी अपनी धनक दिखाते हैं। अब चुनाव की घोषणा होते ही छात्र संगठनों ने चुनाव को लेकर अपनी-अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। इसी सप्ताह से संगठनों ने नए छात्रों को अपने समर्थन में करने के लिए सदस्यता अभियान भी चलाया है। जल्द ही संगठन अपनी-अपनी चयन समितियों का गठन करेंगे, जिससे योग्य उम्मीदवारों की खोज की जा सके। संगठन ऐसे उम्मीदवारों की तलाश में हैं जो न सिर्फ़ बेहतर व्यक्तिव के मालिक हों,बल्कि छात्र-छात्राओं के बीच में लोकप्रिय भी हों।
चुनाव की तिथि से पहले ही डीयू कैंपस की दीवारें पोस्टरों से पट गई हैं। संगठनों का ज़ोर इस बार पेपर लैस कैंपेन पर है लेकिन उम्मीदवारों की रेस में शामिल होने के लिए व्यक्तिगत तौर पर छात्र उम्मीदवारी की दावेदारी पेश कर रहे हैं। इस कारण से उन्होंने दीवारों को पोस्टरों से भर दिया है।
देश की मुख्य राजनीति में डूसु चुनाव की बड़ी महत्ता समझी जाती है और डूसू चुनाव को राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश की पहली सीढ़ी माना जाता है। डूसू चुनाव की शुरुआत वर्ष 1954 से हुई। इसके इतिहास में डूसू की छात्र राजनीति ने देश को कई बड़े बड़े नेता दिए हैं। जो डूसू में अपनी धाक दिखाने के बाद नगर निगम, विधानसभा और लोकसभा तक में अपना विजयी परचम लहरा चुके हैं। इनमें सुभाष चोपड़ा,अजय माकन,अरुण जेटली,पूर्णिमा सेठी,विजय गोयल,विजय जॉली,अलका लांबा,अमृता धवन,जैसे अनेकों नाम शामिल हैं।