स्कूलों द्वारा फीस बढ़ाने का मामला: दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन ने एलजी, सीएम और शिक्षा मंत्री को लिखा पत्र, उठाई ये मांग

दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन (डीपीए) ने दिल्ली के उपराजयपाल

नई दिल्ली, 09 मई (वेब वार्ता)। दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन (डीपीए) ने दिल्ली के उपराजयपाल, मुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर शिक्षा निदेशालय के 27 मार्च 2024 के आदेश पर रोक लगाने के दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का अनुरोध किया है। डीपीए ने पत्र में लिखा है कि दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों द्वारा हर साल बढ़ी हुई मनमानी फीस वसूली जाती है, जिससे मध्यम वर्गीय परिवारों पर बच्चों की शिक्षा का अतिरिक्त भार पड़ता है। 27 मार्च को शिक्षा निदेशालय ने सर्कुलर जारी कर सभी निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशालय से अनुमति लेने के लिए कहा था। साथ ही बिना अनुमति फीस बढ़ाने पर सख्त कार्रवाई की बात कही थी। इस आदेश के बावजूद स्कूलों द्वारा 40 से 50 प्रतिशत की फीस वृद्धि कर पैरेंट्स से जबरन फीस वसूली जा रही है। साथ ही स्कूल एसोसिएशन ने शिक्षा निदेशालय के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने दो मई को शिक्षा निदेशालय के फीस बढ़ाने से पहले अनुमति लेने के आदेश पर रोक लगा दी थी। दिल्ली के अभिभावकों में हाई कोर्ट के रोक लगाने से निराश डीपीए ने पत्र में यह भी लिखा है कि दिल्ली के अभिभावकों में शिक्षा विभाग की प्राइवेट स्कूल ब्रांच और शिक्षा विभाग की तरफ से दलील पेश करने वाले वकीलों के खिलाफ आक्रोश है। क्योंकि ये देखा गया है कि शिक्षा विभाग के पास सभी आवश्यक दस्तावेज जैसे स्कूलों के 17(3) का बयान जिनमें वित्तीय अनियमितताएँ साबित हो रही रही हैं, के बावजूद कोर्ट में या तो उन्हें पेश नहीं किया जाता या फिर दलील इतने हल्के तरीके से रखी जाती है कि केस स्कूल के पक्ष में चला जाता है। दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की संख्या डीपीए ने पत्र में कुछ आंकड़े देते हुए बताया है कि दिल्ली में मान्यता प्राप्त सरकारी स्कूलों की संख्या लगभग 2000 है। जिनमें से लगभग 394 स्कूल सरकारी ज़मीन पर बने हैं। इन 394 स्कूलों में से भी केवल लगभग 350 स्कूलों पर लैंड क्लॉज लागू है। मतलब 2000 स्कूलों में से केवल 350 स्कूलों का हर वर्ष ऑडिट करने की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग पर है। अब इन 350 लैंड क्लॉज वाले स्कूलों में से केवल अधिकतम 230 स्कूल ही अपनी 17(3) की स्टेटमेंट शिक्षा विभाग में फीस बढ़ोतरी के लिए जमा करवाते हैं। साल 2016-17 में 98 स्कूलों ने निदेशालय के पास फीस बढ़ाने की अनुमति के लिए आवेदन किया था। इनमें से सिर्फ 32 स्कूलों को निशालय से 15 प्रतिशत फीस बढ़ाने की अनुमति मिली थी, लेकिन स्कूलों ने आदेश का उल्लंघन करते हुए 33 प्रतिशत फीस बढ़ाई। इसके बाद वर्ष 2017-18 में 225 स्कूलों ने आवेदन किया। 59 स्कूलों को 15% फीस बढ़ाने की अनुमति मिली लेकिन स्कूलों ने 26 प्रतिशत फीस वसूली। इसी तरह 2018-19 में 158 स्कूलों में से 38 को 20% प्रतिशत फीस बढ़ाने की अनुमति मिली। स्कूलों ने 24% प्रतिशत फीस वसूली। इसी तरह 2019-20 में 229 स्कूलों में से 93 को 20% फीस बढ़ाने की अनुमति मिली लेकिन स्कूलों ने 41% फीस वसूली।दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन का कहना है कि 2000 निजी स्कूलों में से लगभग 1800 स्कूल यानि 90% स्कूल मनमानी फीस वसूल रहे हैं, क्योंकि वे पूर्वानुमति के दायरे में नहीं आते। और जो आते हैं वे भी मनमानी फीस वसूल रहे हैं। क्योंकि वे बार-बार लगातार आदेशों की अवहेलना करने के बावजूद उन पर सख्त कार्रवाई नहीं होती। जबकि स्कूल के पास इतना पैसा उपलब्ध है कि उसे फीस बढ़ाने की आवश्यकता ही नहीं। यहाँ ध्यान देने वाली बात ये भी है कि कोर्ट द्वारा आदेशों में हर बार इस बात पर ज़ोर दिया जाता है कि स्कूल कैपिटेशन फीस, मुनाफाखोरी या शिक्षा के व्यावसायीकरण में शामिल नहीं हो सकते। जबकि स्कूल खुलेआम ऐसा कर रहे हैं।

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *