राज्यपाल के हिंदी में भाषण देने पर मेघालय विधानसभा में हंगामा

केंद्र सरकार राज्य के लोगों पर हिंदी थोप नहीं सकती।

नई दिल्ली (एशियन पत्रिका ब्यूरो)

देश में हिन्दी हिन्दू और हिदुस्तान की बात करने वाले आज स्तब्ध रह गये जब मेघालय विधानसभा का बजट सत्र हंगामे के साथ शुरू हुआ और राज्यपाल फागू चौहान ने जब अपना अभिभाषण हिंदी भाषा में दिया तो वॉयस ऑफ द पीपुल्स पार्टी सहित चार पार्टियों के विधायक नाराज़ हो गए। विधायकों ने सदन से वॉकआउट कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष थॉमस ए संगमा और मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने उन्हें समझाना चाहा, लेकिन तब भी वे नहीं माने। वॉकआउट से पहले वॉयस ऑफ द पीपुल्स पार्टी विधायक अर्देंट मिलर बसाइवामोइत और मुख्यमंत्री संगमा के बीच नोकझोंक भी हुई। बसाइवामोइत ने कहा कि मेघालय हिंदी भाषी राज्य नहीं है, इसलिए राज्यपाल का हिंदी में भाषण देना लोगों की भावनाओं के विरुध है। केंद्र सरकार राज्य के लोगों पर हिंदी थोप नहीं सकती। मेघालय विधानसभा की ऑफिशियल लैंग्वेज इंग्लिश है और लोकल लैंग्वेज खासी और गारो है। विधायक बसाइवामोइत ने कहा कि राज्यपाल हिंदी में क्या बोलते हैं, हमें कुछ भी समझ में नहीं आता है। इसलिए हम इस कार्यवाही का हिस्सा नहीं बनना चाहते। जिन्हें कोई दिक्कत नहीं है वे सदन में बैठे रह सकते हैं। विधानसभा अध्यक्ष थॉमस ए संगमा ने कहा कि राज्यपाल हिंदी में सदन को संबोधित कर सकते हैं। उनके भाषण की कॉपी विधानसभा के सभी सदस्यों को अंग्रेजी में दी गई थी। सीएम कॉनराड संगमा ने कहा कि राज्यपाल को ठीक से इंग्लिश पढ़ना नहीं आता है, इसलिए उन्होंने हिंदी में भाषण दिया। स्पीकर के रोकने पर भी विधायकों ने वॉकआउट कर राज्यपाल का अपमान किया है। सीएम ने सभी सदस्यों से विधानसभा का डेकोरम मेनटेन करने का आग्रह किया। मेघालय में एनपीपी, यूडीपी और भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई है। 27 फरवरी को विधानसभा की 59 सीटों पर वोटिंग हुई थी। 2 मार्च को चुनाव के परिणाम घोषित हुए, जिनमें एनपीपी 26 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वहीं, यूडीपी ने 11 सीट पर जीत हासिल की। कांग्रेस और टीएमसी के खाते में 5-5 सीटें आईं। वहीं, भाजपा  ने 2 सीट पर जीत दर्ज की है। दक्षिण में ऐसा पहली बार नहीं है जब हिंदी का विरोध हुआ हो। इससे पहले केरल के मुख्यमंत्री  पिनराई विजयन ने पीएम मोदी को एक लेटर लिखकर हिंदी का विरोध जताया था। वहीं, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने कहा था कि हिंदी थोपकर केंद्र सरकार को एक और भाषा युद्ध की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। इनका कहना है कि हिंदी को अनिवार्य बनाने के प्रयास छोड़ दिए जाएं और देश की अखंडता को कायम रखा जाए।

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