साल भर में कहां से कहां पहुंच गए रूस और चीन के संबंध

पिछले साल चार फरवरी को ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने अपना बहुचर्चित साझा वक्तव्य जारी किया था। उस समय पुतिन बीजिंग विंटर ओलिंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह में भाग लेने के लिए यहां आए थे। शी और पुतिन ने उस साझा वक्तव्य विश्व व्यवस्था पर पश्चिम के दबदबे को खत्म करने का संकल्प लिया था। इसके ठीक 20 दिन बाद रूस ने यूक्रेन के खिलाफ अपनी विशेष सैनिक कार्रवाई शुरू की। इस बीच बीते एक साल में चीन और रूस के संबंध लगातार मजबूत होते गए हैं।

यह अवधि चीन के लिए फायदेमंद साबित हुई है। रूस उसके लिए कच्चे तेल का एक बड़ा सप्लायर बन कर उभरा है। आम धारणा है कि रूस ने चीन को अंतरराष्ट्रीय भाव की तुलना में काफी कम दाम पर तेल बेचा है। यह मसला अमेरिका से चीन के संबंधों में एक और पेच बन गया है। यूक्रेन युद्ध के आरंभिक दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीन को रूस का साथ ना देने की चेतावनी दी थी। लेकिन चीन ने उस पर ध्यान नहीं दिया।

अमेरिका में इस बात के कयास लगाए जाते रहे हैं कि क्या चीन ने रूस को सैनिक मदद भी दी है। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने कहा है कि उनके पास ऐसे कोई सबूत नहीं है। चीन ने भी रूस को हथियार देने का बार-बार खंडन किया है। लेकिन आर्थिक क्षेत्र में वह रूस से अपने संबंध को लगातार मजबूत बनाता चला गया है।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दोनों देशों के बीच बढ़े व्यापार को लेकर रूसी राष्ट्रपति को बधाई संदेश भेजा था। रूस और चीन के बीच गहराते इस संबंध से पश्चिमी राजधानियों में बेचैनी देखी गई है। वहां यह आम शिकायत जताई गई है कि रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों को नाकाम करने में सबसे बड़ी भूमिका चीन ने निभाई है।

विश्लेषकों के मुताबिक चीन ने भले यूक्रेन युद्ध में रूस को सैनिक मदद न दी हो, लेकिन इस बीच रूस के साथ चीनी सैनिकों ने कई बार साझा सैनिक अभ्यास किए हैं। इनमें एक अभ्यास पूर्वी चीन सागर में किया गया, जिसमें रूसी लड़ाकू जहाज जापान की सीमा के करीब तक गए। जापान अमेरिका का खास सहयोगी देश है और वहां अमेरिकी सैनिक अड्डे मौजूद हैं।

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