भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए पटना में विपक्षी नेताओं का जमावड़ा।
450 सीटों पर विपक्ष ‘वन इज़ टु वन’ फार्मूले से बीजेपी को चुनौती देगा

नई दिल्ली (एप ब्यूरो)
बिहार के मुख्यमंत्री निवास यानि एक अणे मार्ग में हुई विपक्षी नेताओं की बैठक में 15 पार्टियों के नेता मौजूद रहे। ढाई घंटे की बैठक में कॉमन मिनिमम प्रोग्राम,सीट बंटवारे को लेकर चर्चा हुई है। बिहार की राजधानी पटना में हुई इस विपक्षी नेताओं की बैठक एक बड़ी राजनीतिक ख़बर इसलिए बनी है कि भाजपा और पीएम मोदी की विरोधी विपक्षी पार्टियों की बैठक में राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी तक,अरविंद केजरीवाल से लेकर अखिलेश यादव तक,विपक्ष के बड़े नेताओं ने भाग लिया है। और इन सबका एजेंडा एक ही है कि 2024 के चुनाव में एकजुट होकर भारतीय जनता पार्टी को हराना है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि 450 सीटों पर विपक्ष ‘वन इज़ टु वन’ फार्मूले से बीजेपी को चुनौती देगा। यानी भाजपा कैंडिडेट के ख़िलाफ़ विपक्ष की ओर से सिर्फ एक कैंडिडेट उतारा जाएगा। हालांकि, इस फॉर्मूले की सबसे बड़ी चुनौती है सीटों का बंटवारा, यानी कितनी सीटों पर किस पार्टी का उम्मीदवार लड़ेगा।
कहा तो ये जा रहा है कि समता स्वतंत्रता बंधुत्व भाईचारे और लोकतांत्रिक मूल्यों को पुनः स्थापित करने के लिए यह गठबंधन देश के लिए मील का पत्थर साबित होगा। लेकिन कहना आसान है इसको करने में अभी बहुत सी चुनौतियों का सामना है। लेकिन फ़िलहाल तो इस विपक्षी एकता की पहल को शुभ संकेत ही माना जा रहा है। क्योंकि विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ ‘वन इज टु वन’फॉर्मूले के तहत उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल,जब किसी मज़बूत पार्टी के उम्मीदवार के ख़िलाफ़ बाकी सभी विपक्षी दल मिलकर अपना सिर्फ एक उम्मीदवार उतारते हैं तो इसे ‘वन इज टु वन’का फॉर्मूला कहा जाता है।
ज्ञात रहे कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 13 मई को कांग्रेस की जीत के दो दिन बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक प्रपोजल दिया था। उन्होंने कहा था कि हम उन राज्यों में कांग्रेस का समर्थन करेंगे जहां पर उसकी जड़ें मजबूत हैं। इसके बदले में कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों को उनके गढ़ में समर्थन देना चाहिए। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि यह नहीं हो सकता कि हम यानि तृणमूल कर्नाटक में आपको समर्थन दें और आप बंगाल में तृणमूल के ख़िलाफ़ लड़ें। अगर आप कुछ अच्छा हासिल करना चाहते हैं तो आपको कुछ क्षेत्रों में त्याग करना पड़ेगा। ममता बनर्जी के पास अन्य राज्यों और पार्टियों के लिए भी प्रपोजल है। ममता पश्चिम बंगाल में भाजपा को कमज़ोर करने के लिए बिना शर्त समर्थन हासिल करना चाहती हैं। साथ ही वह कहती हैं कि यूपी में अखिलेश यादव की सपा मज़बूत है। इसलिए हमें यूपी में सपा का समर्थन करना चाहिए।
ममता बनर्जी का प्रपोजल यहां उन सीटों से है जिन पर 2019 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी और जिन पर वह भाजपा के मुकाबले दूसरे नंबर पर थी। ममता बनर्जी का मानना है कि कांग्रेस, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात सहित देश भर की लगभग 200 लोकसभा सीटों पर मजबूत है। इन 200 लोकसभा सीटों में से 91 सिर्फ राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात में हैं।
इस विपक्षी एकता की बैठक को अपने आप में एक अच्छी पहल माना जा रहा है और अगर विपक्षी एकता के लिए ममता का फॉर्मूला लागू किया जाता है तो कांग्रेस को लगभग 227 से ज़्यादा सीटें नहीं मिलेंगी। ये वे सीटें हैं, जिन पर 2019 में कांग्रेस ने या तो जीत दर्ज की थी या वो भाजपा के मुकाबले दूसरे नंबर पर रही थी।
इसके अलावा 34 सीटें ऐसी हैं जहां पर क्षेत्रीय पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही। माना जा रहा है कि ममता इनमें से भी कुछ सीटें कांग्रेस को देने को तैयार हो सकती हैं।
पश्चिम बंगाल राज्य में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस और लेफ्ट ने मिलकर लड़ा। सिर्फ तीन सीटों को छोड़कर यह चुनाव तृणमूल बनाम भाजपा हो गया था। इन तीन सीटों में से भी कांग्रेस दो ही जीत पाई और उसका कुल वोट शेयर भी घटकर 4.76% हो गया। यानी ममता बनर्जी फॉर्मूले के हिसाब से कांग्रेस को यहां भी सिर्फ दो सीटें मिलेंगी। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो वहां लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 67 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन जीत सिर्फ सोनिया गांधी की सीट रायबरेली पर मिली थी। वहीं तीन सीटों पर पार्टी दूसरे नंबर पर थी। यानी ममता के फॉर्मूले के हिसाब से कांग्रेस को यूपी में सिर्फ चार सीटें मिलेंगी। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। वर्तमान में बिहार में कांग्रेस,जदयू और राजद तीनों महागठबंधन का हिस्सा हैं। कांग्रेस ने 2019 में 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा,लेकिन जीत मिली सिर्फ एक पर। साथ ही दो सीटों पर भाजपा के मुकाबले नंबर दो पर रही। यानी कांग्रेस को यहां भी तीन से ज़्यादा सीटें नहीं मिलेंगी। इधर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने कहा है कि लोकसभा चुनाव में गठबंधन होने की स्थिति में वह 350 सीट से कम पर चुनाव नहीं लड़ेगी। देश में लोकसभा की कुल 543 सीटें हैं। कांग्रेस ने 2019 में 421 सीटों पर चुनाव लड़ा था। ऐसे में वह विपक्षी सहयोगियों के लिए 193 सीटें छोड़ने को तैयार हैं।
राहुल गांधी ने भी अमेरिका दौरे के दौरान कहा था कि विपक्षी एकता के लिए कुछ गिव एंड टेक करने होंगे। कांग्रेस पार्टी ने नीतीश कुमार को भी इस बारे में जानकारी दे दी है। माना जा रहा है कि तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सीटों पर अंतिम फैसला लेगी। यहां पर कांग्रेस की जीत और हार का असर सीटों पर भी पड़ेगा। बहरहाल अभी तो विपक्षी नेताओं ने अपना ये संदेश देने का प्रयास किया है कि हम एक है। दूसरे एक साथ लड़ेंगे। तीसरे जो भी पॉलिटिकल एजेंडा बीजेपी लाए,सब साथ मिलकर उसका विरोध करेंगे।