यूनिसेफ ने पश्चिम बंगाल सरकार के साथ मिलकर डायबिटीज से पीड़ित बच्चों के लिए किया काम
UNICEF works with the Government of West Bengal for children suffering from diabetes

कोलकाता, यूनिसेफ ने पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के साथ मिलकर डायबिटीज से पीड़ित बच्चों के उपचार और देखभाल को जमीनी स्तर तक पहुंचाने के लिए काम किया है।टाइप 1 डायबिटीज के नाम से भी जानी जाने वाली यह डायबिटीज तब होती है जब बच्चे का शरीर पैंक्रियास में उन कोशिकाओं को नष्ट कर देता है जो रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर रखने के लिए इंसुलिन का उत्पादन करती हैं। नतीजतन, बच्चों को दिन में कई बार इंसुलिन का इंजेक्शन लगाना पड़ता है।पश्चिम बंगाल में यूनिसेफ के प्रमुख डॉ. मोनजुर हुसैन के अनुसार, संयुक्त पहल का उद्देश्य सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों और प्रावधानों को मजबूत करके बच्चों में नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज की रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल को विकसित करना है।इस मामले में विस्तार से बताते हुए यूनिसेफ की स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. वंदना भाटिया ने कहा कि पहले कदम के रूप में यूनिसेफ चिकित्सा अधिकारियों, स्टाफ नर्सों, एएनएम, आशा कार्यकर्ताओं, सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों जैसे स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को जुवेनाइल डायबिटीज और अन्य बचपन की गैर-संचारी बीमारियों के बारे में प्रशिक्षण देगा।भाटिया ने कहा, “इससे नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज में अधिक बच्चों की पहचान और रेफरल में भी मदद मिलेगी।” पता चला है कि वर्तमान में पश्चिम बंगाल के पांच जिलों हावड़ा, हुगली, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और पूर्वी बर्दवान के साथ-साथ कोलकाता में राज्य द्वारा संचालित एसएसकेएम मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में टाइप 1 डायबिटीज के इलाज के लिए गैर-संचारी रोग क्लीनिक हैं। इन जगहों पर हर साल करीब 600 बच्चों का इलाज किया जा रहा है। हुसैन ने बताया कि अन्य 10 जिला अस्पतालों को क्लीनिक शुरू करने के लिए सरकार की मंजूरी मिल गई है और बाद में यह सुविधा पूरे राज्य में विस्तारित की जाएगी।यंग डायबिटिक रजिस्ट्री ऑफ इंडिया से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, देश में एक लाख (1,00,000) बच्चों में से पांच बच्चे जुवेनाइल डायबिटीज का शिकार हो जाते हैं।केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अतिरिक्त डीडीजी और निदेशक (ईएमआर) डॉ एल स्वस्तिचरण के अनुसार, युवा वयस्कों और बच्चों की बदलती जीवनशैली से देश भर में उनके बीच नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज की संख्या बढ़ रही है।